मन से हारा इंसान ही असल जिंदगी में बेरोजगार है
बेरोजगारी
मन से हारा इंसान ही असल जिंदगी में बेरोजगार है ।
बेरोजगारी
बेरोजगारी एक ऐसा शब्द है जिसे हम कुछ शब्दों मात्र से परिभाषित नहीं कर सकते हैं कभी-कभी आप बेरोजगार होने के बाद भी अपने आप को बेरोजगार नहीं समझ पाते हैं
जैसे
खुली बेरोजगारी:- व्यक्ति को कोई काम नहीं मिलता यह हमारे भारत देश की सबसे गंभीर समस्या है इसमें सक्षम और असक्षम दोनों लोगों को बिना काम के रहना पड़ता है।
शिक्षित बेरोजगारी :- व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिलता है।
मौसमी बेरोजगारी :-यह एक ऐसी बेरोजगारी है जो मुख्यतः कृषि में पाई जाती है भारत एक कृषि प्रधान देश होने के सामान्यतः 78 महीने ही कृषक को रोजगार मिल पाता है इसलिए किसानों को चार-पांच महीने बेरोजगार ही रहना पड़ता है
शहरी बेरोजगारी:- यह बेरोजगारी एक जटिल समस्या है शहरों में आबादी के हिसाब से नौकरी नहीं है ।गांव में रोजगार की कमी की वजह से वहां के लोग शहर की तरफ पलायन करते हैं जिसकी वजह से यह समस्या और भी जटिल होती जा रही है ।
ग्रामीण बेरोजगारी :-पहले यह बेरोजगारी बहुत जोरों पर थी ।कृषक चार-पांच महीने बेरोजगार रहते थे लेकिन जब गाँव से गांव के लोग शहर को पलायन करने लगे हैं तब से ये बेरोजगारी थोड़ी नरम पड गई है ।
मन से हारा इंसान ही असल जिंदगी में बेरोजगार है ।
बेरोजगारी
बेरोजगारी एक ऐसा शब्द है जिसे हम कुछ शब्दों मात्र से परिभाषित नहीं कर सकते हैं कभी-कभी आप बेरोजगार होने के बाद भी अपने आप को बेरोजगार नहीं समझ पाते हैं
जैसे
खुली बेरोजगारी:- व्यक्ति को कोई काम नहीं मिलता यह हमारे भारत देश की सबसे गंभीर समस्या है इसमें सक्षम और असक्षम दोनों लोगों को बिना काम के रहना पड़ता है।
शिक्षित बेरोजगारी :- व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिलता है।
मौसमी बेरोजगारी :-यह एक ऐसी बेरोजगारी है जो मुख्यतः कृषि में पाई जाती है भारत एक कृषि प्रधान देश होने के सामान्यतः 78 महीने ही कृषक को रोजगार मिल पाता है इसलिए किसानों को चार-पांच महीने बेरोजगार ही रहना पड़ता है
शहरी बेरोजगारी:- यह बेरोजगारी एक जटिल समस्या है शहरों में आबादी के हिसाब से नौकरी नहीं है ।गांव में रोजगार की कमी की वजह से वहां के लोग शहर की तरफ पलायन करते हैं जिसकी वजह से यह समस्या और भी जटिल होती जा रही है ।
ग्रामीण बेरोजगारी :-पहले यह बेरोजगारी बहुत जोरों पर थी ।कृषक चार-पांच महीने बेरोजगार रहते थे लेकिन जब गाँव से गांव के लोग शहर को पलायन करने लगे हैं तब से ये बेरोजगारी थोड़ी नरम पड गई है ।
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मानुष जन्म पाए कर नहीं रटे हरि नाम ।
जैसे कुआं जल बिना खुद वाया क्या काम।।
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Nice post
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